Congress New In-Charges: अपने ही नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले दूसरे प्रदेशों की गुटबाजी कैसे करेंगे दूर?
Congress New In-Charges: अपने ही नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले दूसरे प्रदेशों की गुटबाजी कैसे करेंगे दूर?
Congress New In-Charges: राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जिन नेताओं को पार्टी ने राज्यों के प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी है, वे लोग अपने ही राज्यों में पार्टी पर भारी पड़ रहे थे। कई बार वे अपने विरोधियों के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोलते हैं, ऐसे में इन नेताओं से कैसे दूसरे राज्यों की गुटबाजी को दूर करने की उम्मीद की जा सकती है.
विस्तार
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर परिवर्तन होने के बाद अब राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश प्रभारियों में बदलाव का सिलसिला शुरू हो गया है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में हुई स्टीयरिंग कमेटी की पहली बैठक के बाद नई नियुक्तियां तेजी से होने लगी हैं। सोमवार शाम को पार्टी ने राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हरियाणा के प्रभारियों की छुट्टी कर दी। इसमें दो ऐसे राज्य जहां 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं और पूरे देश में इन्हीं दो राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। पार्टी आलाकमान ने छत्तीसगढ़ का प्रभारी हरियाणा की दलित नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को बनाया है। राजस्थान के प्रभारी की जिम्मेदारी पंजाब के नेता सुखजिंदर सिंह रंधावा को सौंपी है। वहीं हरियाणा में प्रभारी के तौर पर शक्ति सिंह गोहिल को तैनात किया है। हालांकि राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जिन नेताओं को पार्टी ने राज्यों के प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी है, वे लोग अपने ही राज्यों में पार्टी पर भारी पड़ रहे थे। कई बार वे अपने विरोधियों के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोलते हैं, ऐसे में इन नेताओं से कैसे दूसरे राज्यों की गुटबाजी को दूर करने की उम्मीद की जा सकती है।
हरियाणा की राजनीति में दिखेगा बदलाव
हरियाणा में नए प्रभारी की नियुक्ति के साथ ही प्रदेश कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में भी अहम बदलाव देखने को मिला। पहला पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को प्रभारी महासचिव बनकर हरियाणा से छत्तीसगढ़ भेज दिया। आए दिन कुमारी शैलजा और राज्य के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच तनातनी की खबरें सामने आती रहती थीं। हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव को लेकर भी दोनों नेताओं की बीच तल्खी देखी गई थी। पूर्व सीएम हुड्डा जब कांग्रेस से इस्तीफा दे चुके गुलाम नबी आजाद के घर मिलने पहुंचे, तो कुमारी शैलजा ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। इस मामले की शिकायत उन्होंने कांग्रेस हाईकमान तक कर दी थी। इसके बाद दोनों नेताओं के बीच खींचतान और तेज हो गई थी। दूसरा, हरियाणा कांग्रेस प्रभारी रहे विवेक बंसल की विदाई के पीछे सबसे बड़ी वजह राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग रही है। इसी वजह से कांग्रेस नेता अजय माकन को हार का मुंह देखना पड़ा था। ऐसी खबर है कि हुड्डा और बंसल दोनों के बीच भी संबंध ठीक नहीं थे। आदमपुर और एलनाबाद उपचुनाव में पार्टी की हार भी उनकी बाहर जाने की वजह बनी।
राजस्थान में विवाद सुलझाना बड़ी चुनौती
पिछले दिनों राजस्थान में हुए सियासी घटनाक्रम के बाद राजस्थान के प्रभारी अजय माकन ने इस्तीफा दे दिया था। तब से राजस्थान में कोई प्रभारी नहीं था। ऐसे में कांग्रेस ने यहां के प्रभार की जिम्मेदारी सुखजिंदर सिंह रंधावा को सौंपी है। रंधावा पंजाब में कांग्रेस की हार के बाद से ही नाराज चल रहे हैं। वे लगातार पंजाब कांग्रेस के नेताओं पर निशाना साधते हुए नजर आते हैं। रंधावा चरणजीत सिंह चन्नी की सरकार में गृह मंत्री बने थे। पंजाब की डेरा बाबा नायक सीट से चौथी बार विधायक बने रंधावा का पंजाब की राजनीति में बड़ा नाम है। राज्य के डिप्टी सीएम से लेकर गृहमंत्री तक रह चुके रंधावा की गिनती कभी कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबियों में होती थी। लेकिन कांग्रेस-अमरिंदर विवाद के बाद रंधावा कैप्टन से अलग हो गए। रंधावा के सामने राजस्थान में गहलोत-पायलट विवाद निपटना बड़ी चुनौती है।
सर्जरी की जगह होम्योपैथी दवा से हो रहा इलाज!
अमर उजाला से चर्चा में लेखक और वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि कांग्रेस को राजनीतिक रूप से सर्जरी की जरूरत है लेकिन उसे टुकड़ों में होम्योपैथी की दवाई दी जा रही है। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष ने कांग्रेस शासित राज्यों में नए प्रभारी बनाकर एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है। पहला तो यह कि जो नेता अपने प्रदेश में हावी हो रहे थे। उन्हें प्रदेश से दूर कर अन्य राज्यों की जिम्मेदारी दे दी। इससे वहां असंतोष और गुटबाजी थोड़ी थम सकेगी। जबकि दूसरा यह है कि छत्तीसगढ़ में प्रभारी बदलकर मुख्यमंत्री को फ्री हैंड किया गया। वहीं राजस्थान में लो प्रोफाइल प्रभारी बनाकर विवाद को थामने की कोशिश की है।
प्रभारी दमदार नहीं तो होगी दिक्कत
किदवई कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में प्रभारी पीएल पुनिया की कई तरह की शिकायतें सामने आ रही थीं। उनका कार्यकाल भी पूरा हो गया था। इसलिए उन्हें बदल दिया गया। पुनिया जगह दलित चेहरा कुमारी शैलजा को प्रभारी बनाकर बैलेंस करने की कोशिश की गई है। लेकिन राजस्थान जैसे चुनौतीपूर्ण प्रदेश में किसी प्रदेश स्तर के नेता को इतनी बड़ी जिम्मेदारी देना सही नहीं है। क्योंकि जब भी पार्टी ऐसे नेता को जिम्मेदारी सौंपती है, तो उसके परिणाम पार्टी के लिए कभी सुखद नहीं होते हैं। फिर चाहे वह पंजाब की बात हो या फिर गुजरात की। अगर प्रभारी दमदार नहीं होंगे, तो कांग्रेस को राज्यों में ऐसी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
वरिष्ठ पत्रकार किदवई बताते हैं, जिन नेताओं को कांग्रेस ने प्रभारी बनाया है, वे लोग अपने ही राज्यों में पार्टी पर भारी पड़ते रहे हैं। कई बार अपने विरोधियों के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोलते थे। ऐसे में इन नेताओं से कैसे दूसरे राज्यों की गुटबाजी को दूर करने की उम्मीद की जा सकती है। रंधावा और शैलजा को जिन राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई हैं, वे राज्य खुद ही कांग्रेस की आंतरिक राजनीति का शिकार हैं। सिद्धू बनाम कैप्टन और फिर चन्नी की खिलाफत करने वाले रंधावा को राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और पायलट की खींचतान का सामना करना पड़ेगा। जबकि छत्तीसगढ़ में कुमारी शैलजा को स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बीच तालमेल बैठना एक चुनौती होगी।
Comments are closed.